Do Tote Ki Kahani | Raja aur Tota | Raja aur Tote Ki Kahani | Motivational Story

Do Tote ki Kahani

Do Tote Ki Kahani | Raja aur Tota | Raja aur Tote Ki Kahani | Motivational Story
 Do Tote Ki Kahani | Raja aur Tota | Raja aur Tote Ki Kahani | Motivational Story

एक वृक्ष पर तोते के दो बच्चे रहते थे। दोनों एक ही जैसे थे- हरे-हरे पंख, लाल चोंच, चिकनी और कोमल देह। जब बोलते तब दोनों के कंठ से एक ही जैसी ध्वनि निकलती थी। एक का नाम था-सुपंखी और दूसरे का नाम सुकंठी। सुपंखी और सुकंठी एक ही माँ की कोख से उत्पन्न हुए थे। दोनों के रूप-रंग, बोली और व्यवहार में कोई अंतर न था। दोनों साथ-साथ सोते-जागते, साथ-साथ दाना चुगते, पानी पीते, दिन भर फुदकते रहते। रात सुख-स्वप्नों में बीत जाती और दिन खेलने-कूदने और चहकने में। बड़े सुख से दोनों का जीवन बीत रहा था। पर यह सुख का जीवन आगे भी सुख से बीत पाता तब न! एक दिन आसमान काले-काले बादलों से घिर गया। घनघोर गर्जन हुआ। बिजली कड़की और बड़ी तेज आँधी आ गई। वन के सारे वृक्ष, झाड़ी-झुरमुट, पशु-पक्षी तहस-नहस हो गए। कुछ ज़मीन पर गिर कर नष्ट हो गए, कुछ आँधी के साथ उड़कर कहाँ से कहाँ चले गए। ऐसे में सुपंखी और सुकंठी भला कैसे बच पाते! वे तो अभी बच्चे ही थे। सुपंखी तो आँधी के साथ उड़कर चोरों की एक बस्ती में जा गिरा और सुकंठी एक पर्वत से टकराकर बेसुध हो गया, जहाँ से लुढ़ककर वह ऋषियों के एक आश्रम में जा गिरा। इस प्रकार दोनों बच्चे एक-दूसरे से विलग हो गए। 


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समय आगे बढ़ता रहा। सुपंखी चोरों की बस्ती में पलता-बढ़ता रहा और सुकंठी ऋषियों के आश्रम में। धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गए। एक दिन उसी राज्य का राजा अश्व पर सवार होकर आखेट के लिए निकला। बनैले पशुओं के पीछे दौड़ता-भागता जब थक गया तो सरोवर के किनारे विश्राम करने लगा। सभी सैनिक पीछे छूट गए। यह सरोवर चोरों की बस्ती के पास था। उस समय सरोवर के आसपास कोई नहीं था। बस, घने वृक्ष थे, जो हवा के झोंकों से धीरे-धीरे झूम रहे थे। राजा थका तो था ही, उसे नींद आने लगी। वह अभी अर्धनिद्रा में ही था कि किसी कर्कश वाणी से उसकी नींद टूट गई। राजा ने इधर-उधर देखा, कोई नहीं था। तभी कर्कश वाणी फिर सुनाई पड़ी, “पकड़ो, पकड़ो, यह व्यक्ति जो सोया है, राजा है। इसके गले में मोतियों की माला है अनेक आभूषण-अलंकार हैं इसके पास। लूट लो, सब कुछ लूट लो। इसे मारकर झाड़ी में डाल दो।'' राजा हड़बड़ा कर उठ बैठा। सामने पेड़ को डाल पर एक तोता बैठा था। वही कर्णकटु वाणी में यही सब कुछ बोल रहा था। राजा को आश्चर्य हुआ। साथ ही उसे भय भी लगा। वह उठ खड़ा हुआ तो तोता फिर बोला, "राजा जाग गया! देखो, देखो... वह भागा जा रहा है! पकड़ो इसे... लो... राजा गया। अलंकार गए। आभूषण गए। सब कुछ गया। कोई पकड़ ही नहीं रहा है।"


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राजा उस स्थान से बहुत दूर निकल गया और एक पर्वत की तलहटी में जा पहुँचा। पर्वत की तलहटी में ऋषियों का एक आश्रम था। आश्रम में उस समय सन्नाटा छाया हुआ था। सभी ऋषि-मुनि भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। राजा का तन-मन विक्षुब्ध तो था ही, सोचा- यहीं विश्राम करूँ। उसने ज्यों ही आश्रम में प्रवेश किया, उसे एक मधुर वाणी सुनाई पड़ी, “आइए राजन्, आइए! ऋषियों के इस पावन आश्रम में आपका स्वागत है।'' राजा ने चकित होकर सामने की ओर देखा- वृक्ष की डाल पर बैठा एक तोता राजा का स्वागत कर रहा था। प्रथम दृष्टि में तो राजा को यही प्रतीत हुआ कि यह वही तोता है, जो सरोवर के किनारे मिला था-वही रूप, वही रंग, वही आकार-प्रकार। राजा पुनः ध्यान से उसे देखने लगा। तोता फिर बोला, 'राजन्! आप चकित क्यों है? इस आश्रम का आतिथ्य ग्रहण कीजिए। आप थके हैं, विश्राम कीजिए। जलाशय से जल पीजिए। आपको भूख भी लगी होगी। आश्रम के फल ग्रहण कीजिए।'' राजा सोचने लगा- नहीं, यह तोता वह नहीं है, जो सरोवर के किनारे मिला था। इसकी वाणी कितनी मधुर है, कितनी कोमल है और वाणी में कितनी विनम्रता और शिष्टता है।


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तोता फिर बोला, "राजन्! आप किस संकोच में पड़ गए? आश्रम में प्रवेश कर हमें अनुगृहीत कीजिए।'' राजा बोला "तुम्हारी मधुर वाणी सुनकर मैं दुविधा में पड़ गया हूँ। अभी कुछ समय पूर्व मुझे सरोवर के किनारे भी एक तोता....'सुनते ही तोता बोल उठा, "मैं सब समझ गया! वह मेरा जुड़वाँ भाई सुपंखी है और मैं हूँ– सुकंठी। एक ही कोख से उत्पन्न होकर हम दोनों एक परिवेश में नहीं रह पाए। समय का ऐसा चक्र चला कि दोनों अलग-थलग हो गए। वह चोरों की बस्ती में पला-बढ़ा और मैं यहाँ ऋषियों के आश्रम में.. कहते-कहते सुकंठी थोड़ा-सा रुका। फिर दुखी स्वर में बोला, “राजन्, सुपंखी मेरा भाई है। दो-चार बार मुझे मिला भी। मैंने बहुत चाहा कि वह मेरे पास इस पावन आश्रम में आ जाए। परंतु राजन्, उसे आश्रम का वातावरण रुचिकर नहीं लगा। जानते हैं क्यों? वह मुझसे विलग होकर सदैव चोरों की बस्ती में रहा। वहीं की वाणी, वहीं का परिवेश और आचरण उसके भीतर रच-बस गए हैं।"


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सीख - संगत का आदमी पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। "संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात"। इससे हमें यह पता लगता है कि हमें अपनी संगति अच्छी रखनी चाहिए ताकि हमारा स्वभाव भी निर्मल और अच्छा बना रहे।



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